Monday, August 3, 2020

मोहम्मद गौरी

भारतवर्ष की इस भूमि पर अनेक वीर शासकों ने शासन किया तथा अपने सामर्थ्य ,योग्यता और अपनी उदारता का परिचय दिया किंतु इसी भारत की भूमि पर कुछ ऐसे विदेशी ( मुगल ) आक्रमणकारी शासकों ने भी राज किया जो छल कपट और क्रूरता से भारत की इस पवित्र भूमि को अपना गुलाम बनाये और इसको मनमानी लूटा एवं भारत की संस्कृति को खंडित किया और भारत वासियों में फूट डाला, आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे ही कपटी एवं क्रूर मुगल शासक की इस अफगान के कपटी शासक के बारे में जानने से पहले में ये सोचता था कि एक पठान कभी किसी के साथ छल नही कर सकता एवं ये वचनबद्ध होते है किंतु इस क्रूर और कपटी शासक के बारे में अध्ययन करने के बाद मेरे सारे विचार बदल गये ,जी हा हम उसी अफगान के कपटी शासक की बात कर रहे है जिसका नाम मोहम्मद गौरी है आईये इसके विषय में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य जानते हैं


मोहम्मद गौरी का जन्म :-


अफगान एवं भारत के इतिहास के इस कपटी शासक का जन्म के बारे में  बहुत अधिक मतभेद है किंतु कुछ इतिहासकारो के अनुसार इसका जन्म 1149 ईसवी में अफगान अर्थात आज के अफगानिस्तान में हुआ था किंतु आपको बता दे कि जन्म से ही इसका नाम मोहम्मद गौरी नहीं था , इसका पूरा नाम मुइज़ अद-दिन मुहम्मद  था।


गोरी वंश का इतिहास :-


इतिहासकारों के अनुसार गौरी वंश की स्थापना 12 वीं शताब्दी के आसपास  हुआ जिसका स्थापक मोहम्मद गौरी का चाचा अला-उद-दीन जहांसोज था तथा अला-उद-दीन जहांसोज के मृत्यु के पश्चात और वंशवाद  के अनुसार उसका पुत्र सैफ-उद-दीन गोरी ने उसकी गद्दी संभाली तथा कुछ वर्ष पहले अला-उद-दीन जहांसोज ने शहाबुद्धीन मोहम्मद गोरी एवं उसके  छोटे भाई गियासउद्दीन को कई सालों तक अपने कैद मैं रखा था परंतु अपने पिता की मृत्यु के पश्चात , सैफ-उद-दीन गोरी द्वारा गद्दी संभालने के उपरांत  मोहम्मद गौरी और उसके छोटे भाई गियासउद्दीन को उम्र कैद से आजाद कराया और कुछ वर्ष के उपरांत सैफ-उद-दीन गोरी के मृत्यु के पश्चात गियासउद्दीन ने राज्य पाठ संभाला लेकिन उसके उपरांत  1173 ईसवी में मोहम्मद गौरी को गजनी साम्राज्य द्वारा गोर राज्य का उत्तराधिकारी बनाया तथा भारत में तुर्क साम्राज्य संस्थापक मोहम्मद गौरी था इसकी योजना तो पूरे भारतवर्ष में मुस्लिम साम्राज्य फैलाने की थी किंतु इसकी ये योजना कभी सफल नहीं हो पाई हालांकि इसने अपनी इस योजना को सफल बनाने के लिए बहुत अधिक रक्त पात मचाया और जबरदस्ती धर्म परिवर्तन जैसे  अपराध किए तथा जो उस समय जो अपना धर्म परिवर्तन नहीं करता था या उसकी बीवी बच्चों और उसके पूरे परिवार को गरम तेल में डलवा देता था इसने अपना सबसे पहला हमला भारत के गुजरात पर 1178 में किया परंतु गुजरात द्वारा यह बुरी तरह परास्त हुआ और गुजरात नरेश ने खदेड़ दिया तथा दूसरा आक्रमण इसने पंजाब पर 1179 से 1186 के मध्य हुआ और पंजाब को युद्ध नियम के विरुद्ध जाके बला जोरी द्वारा हथिया लिया तथा इसके उपरांत 1179 में स्यालकोट पर छल से अपना अधिकार कर लिया 


मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच का प्रचलित इतिहास :-


  • मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान जी का प्रथम युद्ध :-


1191 ईसवी में थानेश्वर के समीप तराइन गेम रणभूमि में पृथ्वीराज और मोहम्मद गौरी के  मध्य युद्ध हुआ जिसमें मोहम्मद गौरी बुरी तरह परास्त हुआ इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान जी ने मोहम्मद गौरी को अपना बंदी बना लिया परंतु कुछ समय उपरांत उन्होंने अपनी उदारता दिखाते हुए उसे छोड़ दिया तथा गौरी एवं पृथ्वीराज के मध्य हुआ या युद्ध प्रथम तराइन युद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुआ



  • मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान जी का द्वितीय युद्ध :-


प्रथम युद्ध मैं पृथ्वीराज चौहान जी से हारने के उपरांत मोहम्मद गौरी ने अपनी और अधिक सेना और शक्ति के साथ पृथ्वीराज चौहान जी से 1192 ईसवी में तराइन के मैदान में ही फिर से युद्ध किया परंतु  वीर हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान जी से बुरी तरह युद्ध हार गया और यह लगभग 17 बार और बहुत बुरी तरह से हारा किंतु 17 वी बार भी पृथ्वीराज जी ने इसे जाने दिया


17 बार भी हारने के बाद ये दुबारा छल करके पुनः उनको हराने की योजना बनाई तथा कन्नौज के राजा और पृथ्वीराज जी के शत्रु महाराज जयचंद्र  और 10 अन्य राज्यों के राजाओं के साथ मिलकर उस वीर हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान जी को छल कपट से हरा दिया और उनके राज्य पर अपना अधिकार कर लिया और उनको अपने साथ अफगान ले गया वहां ले जाकर महाराजा पृथ्वीराज को बहुत प्रताड़ित किया और उनसे धर्म परिवर्तन करने के लिए बोला , जब वह नहीं माने  तो उनकी आंखों में गर्म सलाखें डलवा दिया ।


मोहम्मद गौरी की मृत्यु :-


मोहम्मद गौरी की मृत्यु 15 मार्च, 1206 ई में झेलम क्षेत्र राज्य पाकिस्तान में  हुआ इस छली शासक का अंत वीर हिंदू शेर  पृथ्वीराज चौहान जी के शब्दभेदी बाण से हुआ तथा इसके उपरांत उन्होंने अपना खंजर अपने सीने में उतार कर के अपने प्राणों की आहुति दे दी तथा अपना बदला पूरा किया ।

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