पृथ्वीराज चौहान :-
भारत वर्ष एक ऐसा देश है जिसमें अनेक वीर सपूतों को जन्म दिया है और आज भी जब इतिहास में वीरता निष्ठा और निर्भीकता की बात होती है तो सबसे पहला नाम भारत के ऐसे वीर सपूतों का आता है.और सदैव आता रहेगा यहां के वीर सपूतों ने हमेशा से ही अपनी मिट्टी का कर्ज वीरगति को प्राप्त करके चुकाया है ऐसे ही वीर सपूत महाराज पृथ्वीराज चौहान जी की कहानी आज हम आपके सामने प्रस्तुत करेंगे जिनका नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों से अंकित है
पृथ्वीराज चौहान जी का जन्म :-
भारतवर्ष के वीरों के वीर महाराजा पृथ्वीराज चौहान का जन्म सन 1149 में अजमेर में हुआ था महाराज पृथ्वीराज चौहान जी के पिता का नाम श्री सोमेश्र्वर चौहान था जो कि उस समय अजमेर के महाराज थे और इनकी माता का नाम श्रीमती कपूरी देवी था जो दिल्ली की राजकुमारी थी इनका जन्म चौहान वंश के एक क्षत्रिय राजघराने में हुआ था पृथ्वीराज चौहान जी को पृथ्वीराज तृतीय के नाम से भी जाना जाता है या बचपन से ही वीर तथा साहसी प्रवृत्ति के थे इनका जन्म इनके माता-पिता का विवाह होने के 12 वर्ष उपरांत बहुत अधिक पूजा पाठ तथा यज्ञ करने पर हुआ इनके जन्म के उपरांत से ही इनकी मृत्यु की योजनाएं बनने लगी किंतु इनका संरक्षण कभी इनके माता-पिता के आशीर्वाद से तो कभी इनकी खुद की कोशिशों से और कभी इनके भाग्य प्रबल होने के वजह से होता रहा
पृथ्वीराज चौहान जी के शौर्य की गाथाएं :-
इन वीर सपूत के सर से पिता का साया उठ जाना के कारण केवल 11 वर्ष आयु में ही इनका राज्याभिषेक हो गया और यह अजमेर के नये राजा हुए तथा इसके बाद भी इन्होंने अपना बहादुरी का पंचम लहराते हुए अपने उत्तरदायित्व का सही तरह से पालन किया और अपने प्रजा के उम्मीदों पर खरे उतरे तथा इन्होंने महज 13 वर्ष की आयु में तमाम राजाओं को हराया और उनका राज्य पाठ को अपने नाम किया तथा अपने क्षेत्र में विस्तार किया , महाराज पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही युद्ध कला में निपुण थे तथा इन्हें हाथी और घोड़ों को शांत करने की कला भी आती थी एवं यह इकलौते और आखरी हिंदू सम्राट थे जिन्होंने लंबे समय तक दिल्ली पर शासन किए और अपना राज्य पंजाब तक विस्तार करने की योजना बनाई जहां का शासक राजा मोहम्मद गौरी था उसका पूरा नाम मोहम्मद शाबुद्दीन गौरी था वो पंजाब के भटिंडा राज्य से पूरे पंजाब पर शासन करता था, उस समय मोहम्मद गौरी से इनका घमासान युद्ध हुआ और या युद्ध जीत गए और अपने राज्य की सीमाएं इन्होंने पंजाब तक फैला ली और मोहम्मद गौरी के ऊपर दया दिखाते हुए उसे जाने दिया और उसे माफ कर दिया इसके पश्चात मोहम्मद गौरी ने दोबारा हमला किया और दोबारा भी वह हार गया इस तरह से मोहम्मद गौरी बार बार हमला करता था और हार जाता था और हर बार पृथ्वीराज चौहान उसको माफ कर देते थे और जाने देते थे मगर इस बात से मोहम्मद गौरी के स्वाभिमान को बहुत अधिक ठेस पहुंचा और उसने उनसे प्रतिशोध लेने का सोचा जितनी बार मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान के राज्य पर प्रतिशोध लेने के लिए आक्रमण किया उतनी बार उसे शिकस्त का सामना करना पड़ा ऐसा लगभग 17 बार हुआ वह 17 बार पृथ्वीराज चौहान से युद्ध में हारा।
पृथ्वीराज चौहान जीके वैवाहिक जीवन के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :-
पृथ्वीराज चौहान तथा कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता का प्रेम प्रसंग आज भी राजस्थान में प्रचलित है जब पृथ्वी राज की वीरता की कहानी राजकुमारी संयोगिता के पास पहुंची तब वे मन ही मन पृथ्वीराज जी को पसंद करने लगी और उनसे प्रेम करने लगी वो पृथ्वीराज जी को खत लिखती थी और पृथ्वीराज जी भी खत का जवाब देते देते उनसे प्रेम करने लगे तथा उनका चित्र देखते देखते प्रेम हो गया जब यह बात राजकुमारी संयोगिता के पिता जयचंद्र को पता चली तब वो पृथ्वीराज जी से नफरत करने लगे और उनकी निंदा करने लगे कुछ समय पश्चात पृथ्वीराज जी को कन्नौज के महाराज जयचंद्र लज्जित करने की योजना बनाई और राजकुमारी संयोगिता का स्वयंवर रचाया और भारतवर्ष के हर छोटे-बड़े राजाओं और महाराजाओं को स्वयंवर का निमंत्रण दिया पर महाराज पृथ्वीराज चौहान को निमंत्रण नहीं पहुंचाया और उनकी मूर्ति अपने राज्य में द्वारपाल की जगह लगा दीया एवं जब स्वयंवर शुरू हुआ और राजकुमारी संयोगिता ने धीरे-धीरे सभी राजा महाराजाओं के आगे निकल कर पृथ्वीराज की मूर्ति को वरमाला पहनाया और मूर्ति के पीछे खड़े पृथ्वीराज जी ने राजकुमारी को लेकर वहां से चले गए परंतु यह व्यवहार भारतवर्ष के सभी राजाओं को अच्छी नहीं लगी और वह अपना अपमान समझने लगे और इस विषय को देखते हुए महाराज जयचंद्र ने पृथ्वीराज के पीछे अपनी सेना भेजी किंतु इस वीर पुरुष ने सारी सेनाओं को चकमा देकर के वहां से बच निकले और अपने राज्य चले आए ।
पृथ्वीराज चौहान जी के राज्य के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य :-
पृथ्वीराज जी के माता अपने पिता महाराज अंगपाल की इकलौती पुत्री थी और पृथ्वीराज जी के नाना महाराज अंगपाल दिल्ली पर शासन करते थे उनकी मृत्यु सन्न 1166 में हो जाने के बाद वहां का राजा पृथ्वीराज जी को ही नियुक्त कर दिया गया इस तरह से इन्होंने दो बड़ी राजधानियों पर शासन किया जिसके कारण इनकी सेनाएं अधिक शक्तिशाली हो गई और जैसे-जैसे इनकी सीमाएं बढ़ती गई उसी के अनुसार इनकी सेनाएं भी बढ़ती गई जिसमें बहुत अच्छी मात्रा में हाथी घोड़े और तोपे भी शामिल थी पृथ्वीराज जी के एक मित्र जो उनके बचपन के साथी थे और उनके मरणोपरांत तक साथी रहे उनका नाम चंदबरदाई था चंदबरदाई इनकी राज्य के राज्य कवि थे
पृथ्वीराज चौहान जी की मृत्यु :-
जब 18 वी बार मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज से युद्ध करने के बारे में सोचा और इस विषय के बारे में कन्नौज के राजा जयचंद को पता चला तो राजा जयचंद ने भी अपना बदला लेना चाहा और मोहम्मद गौरी से हाथ मिला लिया जब या बात पृथ्वीराज को पता चली कि मोहम्मद गौरी उनसे युद्ध करने के लिए बहुत बड़ी मात्रा में सेना लेकर के आ रहा है तो उन्होंने अपने पड़ोसी राज्यों से सहायता मांगी किंतु सभी ने अपने अपमान के कारण सहायता करने से मना कर दिया तब उन्होंने महारानी संयोगिता के पिता महाराजा जयचंद से सहायता मांगी जयचंद्र ने सहायता के रूप में छल किया वह गौरी के खिलाफ पृथ्वीराज का साथ देने के लिए तैयार हो गया किंतु युद्ध के दौरान पृथ्वीराज की सेना को अपनी सेना से मारने का इशारा किया और पृथ्वीराज के साथ रहकर पृथ्वीराज जी का ही छल कर दिया जब इस बार मोहम्मद गौरी युद्ध जीत गया तो अपने साथ पृथ्वीराज और चंदबरदाई को अफगानिस्तान ले गया और वहां पर यह उन दोनों को खूब प्रताड़ित करता था कुछ दिन बाद जब मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज को अपने राज दरबार मैं बुलाया और इनको आंखें नीचे करने को कहा तब उन्होंने कहा कि तू मेरी वजह से ही जीवित है तेरा जीवन मेरे वजह से ही संभव है तथा एक क्षत्रिय की आंखें उसकी मरने के बाद ही नीची हो तो सकती हैं अर्थात बंद हो सकती हैं यह बात सुनकर मोहम्मद गौरी भड़क गया और पृथ्वीराज जी की आंखों में गरम सलाखें से जलाने का आदेश दे दिया जिसमें पृथ्वीराज जी की आंखें जलने के कारण वह अंधे हो गए तथा चंदबरदाई ने उनको उनके प्रतिशोध लेने का एक योजना बताइए , कुछ समय उपरांत तीरंदाज का एक प्रतियोगिता होने वाली थी उस प्रतियोगिता में चंदबरदाई ने मोहम्मद गौरी को या बताया कि पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण चला सकते हैं यह बात सुनकर मोहम्मद गौरी और उसके समस्त राज दरबार पृथ्वीराज पर हंसने लगे तथा मोहम्मद गौरी ने हंसते हुए एक मौका दिया और बोला कि तुम अपनी योग्यता साबित करो तब चंदबरदाई ने अपने दोहे के अनुसार पृथ्वीराज जी को मोहम्मद गौरी की दूरी और ऊंचाई के बारे में बताया और पृथ्वीराज जी ने मोहम्मद गौरी के सीने में तीर उतार दिया तथा चंदबरदाई ने पहले पृथ्वीराज चौहान को चाकू मारा उसके बाद अपने आप को भी चाकू मार के एक दूसरे के साथ प्राण त्याग दिए, पृथ्वीराज जी की मृत्यु सन 1192 मैं हुई जब यह बात संयोगिता को पता चली कि पृथ्वीराज अब इस दुनिया में जीवित नहीं है तो उन्होंने भी अपने प्राणों की आहुति दे दी
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