Monday, August 3, 2020

समुद्रगुप्त


समुद्रगुप्त :-


वैसे तो आप सभी को चंद्रगुप्त  के बारे में बहुत ही जानकारी होगी और उनसे जुड़े तमाम रहस्य को भी आप बहुत बखूबी से जानते होंगे किंतु आज एक ऐसा रहस्य हम आपके सामने पेश करने वाले हैं, इस रहस्य को जानने के बाद आप और भी चकित हो जाएंगे और यह रहस्य चंद्रगुप्त के गुप्त वंश से जुड़ा हुआ है, जी हां  आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे वीर साहसी एवं पराक्रमी योद्धा की जिसके अस्तित्व के तार गुप्त वंश से जोड़कर देखा जाता है तथा उसे भारत का नेपोलियन भी कहा जाता है इस वीर योद्धा ने अपने समय के सभी पराक्रमी राजाओं को हराया बल्कि इस योद्धा ने अपने जीवन काल के एक भी युद्ध में पराजित नहीं हुआ अपितु सभी युद्ध में विजय प्राप्त की , आइए जानते हैं इस वीर योद्धा से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें ।


समुद्रगुप्त के जन्म के विषय में :-


वीर समुद्रगुप्त के जन्म के विषय में काफी मतभेद है एवं कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है, समुद्रगुप्त के पिता का नाम चंद्रगुप्त था एवं इनकी माता का नाम कुमारदेवी था इनकी शिक्षा का प्रबंध काफी उच्च स्तर पर हुआ यही कारण था कि यह बहुत बड़े विद्वान और शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता थे एवं यह एक प्रतिभाशाली आचरण वाले व्यक्ति थे और अपने योग्यता के कारण सर्वगुण संपन्न कहलाते थे शास्त्रों के साथ शस्त्र विद्या में भी निपुण थे महाराज समुद्रगुप्त की अनेकों रानियां थी किंतु पटरानी का पद दत्तदेवी को  ही प्राप्त हुआ जिससे उनको दो पुत्र प्राप्त हुए एवं प्रथम पुत्र का नाम रामगुप्त था और द्वितीय पुत्र का नाम चंद्रगुप्त था अपने पिता समुद्रगुप्त की तरह वे दोनों भी अत्यंत वीरता से ओतप्रोत थे ।


समुद्रगुप्त का इतिहास के विषय में :-


चंद्रगुप्त प्रथम की मृत्यु के उपरांत उनके उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त को ही चुना गया और उनका राज्य अभिषेक किया गया एवं इतिहासकारों की मानें तो समुद्रगुप्त का शासनकाल  335 से 380 ईसवी तक माना गया है प्रयागराज ( इलाहाबाद ) में प्राप्त अभिलेखों के आधार पर ऐसा माना जाता है की चंद्रगुप्त की मृत्यु के उपरांत राजगद्दी के लिए इनके सभी पुत्रों के बीच अत्याधिक संघर्ष हुआ तथा समुद्रगुप्त पर यह प्रश्न उठने लगे की समुद्रगुप्त राजगद्दी के असली हकदार क्यों है एवं उनके ही भाइयों ने उन्हें युद्ध की चुनौती दी और उनसे अपने आप को साबित करने को कहा, समुद्रगुप्त ने अपने भाइयों के साथ भीषण युद्ध किया एवं अपने आप को साबित भी किया कि वह ही सिंहासन के असली उत्तराधिकारी  हैं जब वे राजसिंहासन पर पूर्ण रूप से विराजमान हुए तब उन्होंने अपने राज्य की सीमाएं को विस्तार करने की योजना बनाई एवं उस योजना को सफल बनाया उन्होंने भारतवर्ष के वीर राजाओं को अपने अधीन किया । इस अभिलेख की रचना उनके राजकवि ‘हरिषेण’ द्वारा लिखी गई है महाराजा समुद्रगुप्त कुशल रणनीति एवं अद्भुत वीरता के साथ हर युद्ध पर विजय प्राप्त की कुछ इतिहासकारों का यह भी कहना है की महाराज समुद्रगुप्त के शरीर पर तलवार तीर भाले कुल्हाड़ी आदि युद्ध में प्रयोग हुए तमाम अस्त्र शस्त्र के घाव का निशान 100 से भी अधिक थे


                                                   भारत वर्ष के इस पराक्रमी राजा ने अपने पराक्रम के बल पर भारत के अत्याधिक राज्यों पर शासन किया एवं अपना लोहा मनवाया इतने बड़े राज्य शासन का चालन करना कोई आसान कार्य तो बिल्कुल नहीं था किंतु इन्होंने अपनी सफल राज नीतियों के कारण अपने इतने बड़े शासन का संचालन किया तथा महाराज समुद्रगुप्त ने भारत के इतिहास में एक महान विजेता तथा साम्राज्य निर्माता के रूप में ख्याति प्राप्त की तथा उन्हें उनकी प्रजा सबसे प्यारी थी और उनके शासनकाल में उनकी प्रजा उनका गुणगान किया करती थी और उन्हें बहुमुखी प्रतिभा के धनी कहती थी, एक वीर पराक्रमी योद्धा होने के अलावा वह एक कुशाल प्रजा पालक, दानी, संगीत प्रेमी तथा साहित्य प्रेमी भी हुआ करते थे, समुद्रगुप्त एक न्याय पूर्ण तथा उदार शासक थे महाराज समुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ किया था और अपने राज्य के मुद्राओं में गरुड़ का चित्र भी अंकित किया था वह विष्णु देव के उपासक थे एवं वैदिक धर्म को मानने वाले व्यक्ति थे उनका अन्य धर्मों से भी व्यवहार बहुत कुशल था तथा वह सभी धर्मों के प्रगति के लिए सहयोग प्रदान किया करते थे एवं वह सभी धर्मों का आदर करते थे



समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहने के पीछे मुख्य कारण :-


समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहने के पीछे अनेकों कारण है, समुद्रगुप्त एक महत्वाकांक्षी राजा थे सिंहासन पर विराजमान होने के उपरांत वह संपूर्ण भारतवर्ष का राजनीतिक एकत्रीकरण करना चाहता थे  अर्थात संपूर्ण भारतवर्ष पर शासन करना चाहता था और संपूर्ण भारत पर विजय पताका फहराना चाहता था , तत्कालीन समुद्रगुप्त ने अपने राज्य के आसपास के सभी राज्यो पर अपना अधिकार कर लिया किंतु उसकी योजना तो दक्षिण भारत पर अधिकार करने तथा शासन करने की थी जब उसको लगा कि उसकी सेना अत्याधिक हो गई है अर्थात् उसकी सेना का सामना करना इतना आसान नहीं है तब उसने अपनी बुद्धि एवं  कुशल रणनीति के आधार पर दक्षिण भारत के 12 राज्यों पर एक-एक करके अधिकार करना आरंभ कर दिया तथा उसने अपने इस मार्ग में कई वीर राजाओं को परास्त किया और उनके राज्य पर अपना अधिकार किया महाराज समुद्रगुप्त ने अपने शासनकाल में कई ऐसे राज्यों पर विजय प्राप्त की जो उस वक्त के अत्याधिक शक्तिशाली राज्य हुआ करते थे परंतु उसने अपने राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र ( आज का पटना ) को ही चुना समुद्रगुप्त ने आर्यवर्त के सभी राज्यों पर अपना शौर्य स्थापित किया एवं अपने साम्राज्य में मिला लिया अब उनके साम्राज्य की सीमा भारत में ही नहीं बल्कि भारत से बढ़कर विदेशों तक होने लगी थी और विदेशी राज्यों के राजा महाराजा उनको अपनी कन्याएं भेंट करने लगे थे अथवा उन से संबंध स्थापित करने लगे थे उन्होंने अपनी सीमाएं उस समय के बंगाल तथा आज के बांग्लादेश से लेकर  हिमालय के समानांतर पंजाब लाहौर, चंबल, जबलपुर तथा करनाल तक अपनी सीमाओं का विस्तार किया महाराज समुद्रगुप्त ने अपने तेज से संपूर्ण पृथ्वी को बांध दिया था एवं पृथ्वी पर उनका कोई भी प्रतिद्वंदी नहीं था, यही एक ऐसा कारण है जिसके वजह से सम्राट समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाने लगा एवं इनकी


मृत्यु :-


 हैं  इंसान  अपने जीवन में  जितना भी संघर्ष कर ले  परंतु एक ना एक दिन उसको  अपने उन संघर्षों का फल जरूर मिलता है  पर जैसे संघर्ष का फल मिलता है उसी प्रकार  जीवन में की गई सारी भूलो का दंड भी मिलता है  महाराज समुद्रगुप्त जी ने अपने जीवन में बहुत से युद्ध जीते या तो हम जानते ही हैं परंतु हमें यह आज तक ज्ञात नहीं हो पाया कि इनकी मृत्यु का सार क्या है इनकी मृत्यु की तिथि में आज भी लोगों को संदेह है परंतु कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि इनकी मृत्यु लगभग 380 ईसवी में हुई थी

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