वैसे तो भारतवर्ष के संस्कार ही कुछ ऐसे हैं की यहां के लोग अपने संस्कृति एवं मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने में कभी पीछे नहीं हटते यहां की मिट्टी में ही कुछ अलग सी बात है जोकि खेल खेल में हमें देशभक्ति और राष्ट्रवादी बना देती है भारतवर्ष में अनेकों राजा महाराजा हुए जिन्होंने अपनी मातृभूमि के रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देदी किंतु गुलामी को कभी नहीं स्वीकारा आज भी हम आपके लिए एक ऐसे ही राजा की कहानी लेकर आए हैं जिसने अपनी वीरता और साहस से दक्षिण भारत पर शासन किया और इतिहास को अपना नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखने पर मजबूर किया आइए जानते हैं इस स्वावलंबी राजा के बारे में
कौन था पुलकेशिन द्वितीय :-
दोस्तों वैसे तो पुलकेशिन द्वितीय के बारे में उनके राजकवि रविकीर्ति द्वारा लिखें ऐहॉल अभिलेख से जानकारी मिलती है, किंतु यह लेख संस्कृत भाषा में है पुलकेशिन द्वितीय अपने समय के पराक्रमी एवं बहुत अधिक प्रसिद्ध होने वाले राजा थे जिनका शासनकाल 609-642 ई. में केवल 31 साल का था राजा पुलकेशिन द्वितीय अपने गृह युद्ध में अपने चाचा मंगलेश को पराजित किया एवं उनके राज्य पर अपना अधिकार किया और उनकी राजगद्दी संभाली उन्होंने श्री पृथ्वीवल्लभ सत्याश्रय की नाम से अपने आप को विभूषित किया। वह अपने जीवन के अंतिम समय तक युद्ध करते रहे एवं दक्षिण भारत में अपनी प्रसिद्धि बढ़ाई उन्होंने अपनी आंतरिक स्थिति को मजबूत करने के लिए अपने दुश्मन राज्य के विद्रोहियों को अपने साथ मिलाना शुरू कर दिया एवं बाद में अपने पड़ोसी राज्यों पर अधिकार करना शुरू कर दिया, पुलकेशिन द्वितीय ने राष्ट्रकूट राजा गोविंद से भीमा नदी के तट पर भीषण युद्ध किया एवं उन्हें पराजित किया इन्होंने अपनी वीरता से ना केवल अपने दुश्मनों को परास्त किया बल्कि अपने राज्य की सीमाओं को अधिक से अधिक विस्तार किया कुछ समय उपरांत कदम्बों की राजधानी बनवासी को भी अपने राज्य में मिला लिया, राजा पुलकेशिन द्वितीय ने अपने सामर्थ्य का परिचय देते हुए मैसूर के गंगों व केरल के अलूपों से भी युद्ध किया एवं उनके राज्यों को भी अपने राज्य में मिला दिया बाद में पल्लव के साहसी राजा महेन्द्रवर्मन से भीषण युद्ध संघर्ष किया और इस युद्ध में राजा महेंद्रवर्मन बुरी तरह परास्त हुए तथा राजधानी कांची तक अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया महाराजा पुलकेशिन द्वितीय कि विजय श्री से डरकर चेर, चोल व पाण्ड्यों ने भी उनकी अधीनता स्वीकार कर ली, उन्होंने नर्मदा से कावेरी के तट के सभी प्रदेशों पर अपना अधिकार कर शासन किया महाराजा पुलकेशिन द्वितीय एक महत्वकांक्षी राजा थे
पुलकेशिन द्वितीय कि विदेशी राजाओं से भी बहुत मधुर संबंध थे उनके परम मित्र ईरान के शासक ख़ुसरो द्वितीय थे तथा पुलकेशिन द्वितीय के दरबार में विदेशी दूतों का काफी ख्याल रखा जाता था एवं उनकी खातिरदारी की जाती थी पुलकेशिन द्वितीय राज्य की सीमाएं देश में ही नहीं बल्कि विदेश तक पहुंचने लगी थी यही कारण था इनकी मित्रता विदेशी राजाओं से भी बहुत अधिक थी तथा पुलकेशिन द्वितीय का अंतिम साल बहुत अधिक संकट पूर्ण रहा एवं पल्लव शासक नरसिंहवर्मन प्रथम ने अपना प्रतिशोध लेने के लिए 642 ई में वातापी पर चढ़ाई कर दी अथवा इस युद्ध में पुलकेशिन द्वितीय बहुत बुरी तरह से परास्त हुए एवं इतिहासकारों की मानें तो इनकी मृत्यु इसी युद्ध में हुई एवं इनके जीवन का यह युद्ध आखिरी युद्ध साबित हुआ पल्लवों ने इनकी राजधानी में बहुत अधिक नरसंहार किया एवं लूटपाट भी मचाई और राजधानी का पूरी तरह से विनाश कर दिया
चालुक्य वंश के अंतिम उत्तराधिकारी :-
पुलकेशिन द्वितीय के उपरांत उनके पुत्र सत्याश्रय जिनको विक्रमादित्य प्रथम के नाम से भी जाना जाता है राज्य पर शासन किया इनका शासन-काल 655-681 ई तक था इन्होंने अपने पिता पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पल्लवों की राजधानी पर हमला कर उनकी राजधानी को तहस-नहस कर दिया एवं चालुक्य वंश के गौरव को अपनी वीरता साहस एवं निर्भीकता से पुन स्थापित किया इन्होंने अपने पिता की तरह अपने पड़ोसी राज्यों को अपना आधीन किया एवं चोलों, पाण्ड्यों एवं केरलों के विरुद्ध भी युद्ध किया और अजय प्राप्त की उनका अधिकांश जीवन पल्लवों से संघर्ष करने में व्यतीत हुआ और पल्लव के राजा नरसिंहवर्मन एवं विक्रमादित्य प्रथम के पिता के हत्यारे महेन्द्रवर्मन द्वितीय, परमेश्वरवर्मन से अपने जीवन के अंतिम क्षण तक संघर्ष किया एवं निरंतर युद्ध किया बाद में उनका उत्तराधिकारी विनयादित्य ने राजगद्दी संभाली और 681-696 ई. तक शासन किया इतिहासकारों के मुताबिक वह विजेता थे जिन्होंने केरलों, मालवों, चोलों, हैहयों, पाण्डयों आदि पर अजय प्राप्त किया, इतिहासकारों ने इन्हें फारस, कावेरी की घाटी तथा सिंहल द्वीप के राजाओं से कर वसूल करने वाला राजा भी बताया है तथा इन्होंने उत्तर के महान शासक सकलोत्तरापथनाथ को भी परास्त किया एवं उनके राज्य पर अधिकार किया
सबसे चर्चित युद्ध पुलकेशिन द्वितीय एवं हर्ष के मध्य युद्ध :-
महाराजा पुलकेशिन द्वितीय चालुक्य वंश का एक वीर एवं शक्तिशाली राजा था हुएनसांग (चीन का राजा) उसकी वीरता एवं युद्ध नीति की प्रशंसा करता था हर्ष की विजयों के कारण उसके राज्य की पश्चिमी सीमा नर्मदा नदी तक विस्तृत हो गई उधर पुलकेशिन द्वितीय भी उत्तर की ओर राज्य की सीमाएं विस्तार करने की योजना बना रहे थे इस स्थिति में दोनों में युद्ध होना संभव था और दोनों के बीच नर्मदा नदी के तट पर एक भीषण युद्ध हुआ जिसमें बहुत अधिक नरसंहार हुआ एवं हर्ष की सेना कम होने के कारण हर्ष बुरी तरह से हार गए
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