Monday, August 3, 2020

सम्भाजी महाराज

शिवाजी के पुत्र के रूप में प्रसिद्ध होने वाले संभाजी महाराज का भी इतिहास अपने पिता छत्रपति शिवाजी  की ही तरह राष्ट्र एवं सनातन धर्म को समर्पित रहा संभाजी महाराज ने अपने बाल काल से ही प्रजा की परेशानियों का निवारण करना प्रारंभ कर दिया था इन दिनों मिली संघर्ष एवं इनके प्रति होने वाली राजनीति से लड़ते हुए शिक्षा दीक्षा ग्रहण किया एवं बालकाल के शंभूजी राजे भविष्य के वीर संभाजी महाराज बने


संभाजी  महाराज का जन्म :-


संभाजी महाराज का अवतरण 1657 में 14 मई को मराठा साम्राज्य  के पुरंदर किले में हुआ इनकी माता का नाम साईंबाई तथा पिता का नाम छत्रपति शिवाजी था, जब यह 2 वर्ष के थे तब इनकी माता साईंबाई की मृत्यु हो, माता की मृत्यु हो जाने के पश्चात उनका लालन-पालन शिवाजी की माता अर्थात इनकी दादी जी जीजाबाई ने किया था संभाजी को प्यार से छवा और शम्भू जी राजे से भी बुलाया जाता था किंतु इनकी दादी जी इनको छवा कहकर ही बुलाती थी जिसका अर्थ मराठी में शावक अर्थात शेर का बच्चा होता है संभाजी को संस्कृत हिंदी मराठी के अलावा 8 और भाषाओं का ज्ञाता कहा जाता है,  ये छत्रपति शिवाजी की दूसरी पत्नी से हुए पुत्र थे संभाजी महाराज के परिवार में पिता शिवाजी और माता सईबाई के अलावा दादाजी शाहजी राजे औऱ दादीजी जीजाबाई एवं भाई-बहन थे. छत्रपति शिवाजी महाराज के 3 पत्नियां थी – साईंबाई,सोयरा बाई और पुतलाबाई, सम्भाजी के एक भाई राजाराम छत्रपति भी थे, जो कि शिवाजी की दूसरी पत्नी सोयराबाई के पुत्र थे. इसके अलावा संभाजी महाराज के शकुबाई, अम्बिकाबाई, रणुबाई जाधव, दीपा बाई, कमलाबाई पलकर, राज्कुंवार्बाई शिरके नामक बहनें भी थी सम्भाजी महाराज का विवाह येसूबाई से हुआ था और इनके पुत्र का नाम छत्रपति साहू था


पिता से संबंध के विषय में :-


सम्भाजी महाराज का बाल काल अधिक संघर्षपूर्ण और विषम परिस्थितियों से व्यतीत हुआ  था संभाजी महाराज की सौतेली माता सोयराबाई की योजना अपने पुत्र राजाराम को शिवाजी का उत्तराधिकारी बनाने की थी. सोयराबाई के कारण संभाजी महाराज और छत्रपति शिवाजी के मध्य सम्बन्ध बहुत हद तक  बिगड़ ने लगे थे संभाजी महाराज ने कई मौकों पर अपनी वीरता भी दिखाई, लेकिन शिवाजी महाराज और उनके परिवार को संभाजी महाराज पर विश्वास नहीं हो पा रहा था ऐसे में एक बार शिवाजी ने संभाजी महाराज को सजा  दी, लेकिन संभाजी वहां से बच निकले और जाकर मुगलों से हाथ मिलाया यह समय शिवाजी महाराज के लिए सबसे अधिक मुश्किल समय था संभाजी महाराज ने बाद में जब मुगलो की हिन्दुओ के प्रति नृशंसता देखी, तो उन्होंने मुगलों का साथ  छोड़ दिया और कसम खाई की वह मुगलो को भारत से खदेड़ देंगे, उन्हे अपनी गलती का अहसास हुआ एवं वह शिवाजी के पास वापिस क्षमा मांगने लौट आये


संभाजी महाराज की  कवि कलश से मित्रता के विषय में :-


बचपन में संभाजी महाराज जब मुगल शासक औरंगजेब की चंगुल से बच निकले थे, तब वो अज्ञातवास के दौरान शिवाजी महाराज के मंत्री रघुनाथ कोर्डे के दूर के रिश्तेदार के यहाँ कुछ वर्ष के लिए रुके थे. वहां संभाजी महाराज लगभग 1 से 1.5 वर्ष के लिए रुके थे, तब संभाजी महाराज ने कुछ समय के लिए ब्राह्मिण बालक के रूप में जीवन व्यतीत किया था. इसके लिए मथुरा में उनका उपनयन संस्कार भी किया गया और उन्हें संस्कृत भी सिखाई गयी इसी बीच संभाजी महाराज का परिचय कवि कलश से हुआ संभाजी महाराज का क्रोध  और विद्रोही स्वभाव को केबल कवि कलश ही संभाल सकते थे और उनके अतिरिक्त कोई नहीं वे संभाजी महाराज के परम मित्र थे


संभाजी महाराज का इतिहास :-


11 जून 1665 को पुरन्दर की संधि में शिवाजी महाराज ने यह सहमती दी थी, कि उनका पुत्र संभाजी राजे मुगल सेना को अपनी सेवा देगा, जिस कारण मात्र 8 साल के संभाजी महाराज ने अपने पिता छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ बीजापुर शासक के खिलाफ औरंगजेब का साथ निभाया था  शिवाजी महाराज तथा संभाजी महाराज ने खुद को औरंगजेब के दरबार में उपस्थित किया, जहाँ उन्हें बंदी बनाने का आदेश दे दिया गया, लेकिन वो वहां से कुछ समय उपरांत भाग निकलने में सफल हुए


30 जुलाई 1680 को संभाजी महाराज और उनके अन्य सहयोगियों को राज्य सौप दीया गया सम्भाजी को अपने पिता के सलाहकार केश्योगियो पर भरोसा नहीं था, इसलिए उन्होंने कवि कलश को अपना नया सलाहकार नियुक्त किया जो कि हिन्दी और संस्कृत भाषा के विद्वान थे और मराठी न होने के कारण भी उन्हें मराठा दायित्व धारियों ने कुछ खास पसंद नहीं किया, इस तरह संभाजी महाराज के खिलाफ कानाफूसी होती रही एवं वातावरण बनता चला गया और उनके शासन काल में कोई भी बड़ी उपलब्धि नहीं हो सकी



सम्भाजी महाराज की उपलब्धियां के विषय मे :-


सम्भाजी महाराज ने अपने अति सूक्ष्म से जीवन काल में सनातन धर्मी समाज के हित में बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल की थी जिसके प्रत्येक सनातन धर्मी आभारी हैं उन्होंने औरंगजेब की 8 लाख की सेना का सामना अपनी वीरता का परिचय देते हुए किया एवं कई युद्धों में मुगलो को अपने शूरवीर पराक्रम से पराजित भी किया औरंगजेब जब महाराष्ट्र के युद्धों में व्यस्त था, तब उत्तर भारत में हिन्दू राजाओं को अपना राज्य पुन: प्राप्त करने और शांति एवं समृद्धि स्थापित करने के लिए काफी वक्त मिल गया इस कारण ही वीर योद्धा मराठाओ के लिए सिर्फ दक्षिण ही नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के हिन्दू उनके ऋणी हैं क्यूंकि उस समय यदि संभाजी महाराज   औरंगजेब के सामने समर्पण कर लेते या कोई संधि कर लेते, तो औरगंजेब अगले 2-3 वर्षों में उत्तर भारत के राज्यों को पुन: अपना आधीन कर लेता, और वहां की आम प्रजा और राजाओं की समस्या मे बढ़ोतरी हो जाती, यह संभाजी महाराज की सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिना जाता हैं किंतु संभाजी ही नहीं अन्य वीर राजाओं के कारण भी औरगंजेब दक्षिण में 27 सालों तक विभिन्न युद्ध में व्यस्त रहा, जिसके कारण उत्तर में बुंदेलखंड एवं पंजाब और राजस्थान में हिन्दू राज्यों में हिंदुत्व को संरक्षित रखा जा सका


संभाजी महाराज ने अत्याधिक वर्षों तक मुगलों को महाराष्ट्र में  व्यस्त रखा देश के पश्चिमी भाग पर मराठा सैनिक एवं मुगल सेना में से कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था संभाजी महाराज वास्तव में सिर्फ विदेशी आक्रमणकारियों से हीं नहीं बल्कि अपने राज्य के अंदर भी अपने विद्रोहियों से घिरे हुए थे इन दोनों युद्ध के बीच मिलने वाली सूक्ष्म सफलताओं के कारण ही संभाजी महाराज प्रजा के एक बड़े समूह के दिलों में अपना राज्य स्थापित करने में सक्षम रहे


वो समय कुछ ऐसा था कि लगातार कई वर्षो तक आकाश एवं धरती वीर मराठो और कपटी मुगलों के खून से सनी रहती थी. फिर एक वक्त ऐसा भी आया जब सभी वीर मराठा पहाड़ी से नीचे आ गए और इस तरह से मुगलों और मराठो के सेनापति अपनी सेनाओं के साथ एक दूसरे के सम्मुख हो गए किंतु इनके इस मैदान में आमने-सामने होने जैसी स्थिति बिल्कुल नहीं थी इसमें मराठाओं का स्थान पहाड़ के निचले हिस्से से लेकर ऊपर चोटी तक का  था, जबकि पहाड़ो के पास के बड़े मैदानों में मुगल सैनिको ने अपना अधिकार कर रखा था ऐसे में क्रमबद्ध तरीके से लगभग 7 वर्षों तक आघात और प्रतिघात का खेल चलता रहा जिसमे मुगलों द्वारा किलो को जीतना और मराठाओ द्वारा उन किलो को वापिस प्राप्त करना अधिक कठिन हो रहा था हालत ये हो गई थे कि उत्तर भारत में कुछ राज्य सोचने लगे थे कि औरंगजेब कभी लौटकर वापस दिल्ली नहीं आएगा अर्थात हिंदुओं के साथ जंग में हार जायेगा इस बीच संभाजी महाराज ने 1682 में औरंगजेब के पुत्र अकबर को शरण देने का प्रस्ताव  रखा, जिसे राजपूत राजाओं ने मान लिया


संभाजी महाराज पर औरंगजेब द्वारा किए गए अत्याचारों के विषय में :-


1689 तक परिस्थितियां बदल चुकी थी. मराठा राज संगमेश्वर में विद्रोहियों के आगमन से अनुसूचित  था ऐसे में मुबारक खान के अचानक आक्रमण से मुग़ल सेना महल के अंदर आ गई और संभाजी के साथ कवि कलश को अपना बंदी बना लिया  उन दोनों को कारागार में डाला गया और बहुत अधिक यातनाएं देने लगे तथा उनके सामने 2 विकल्प रखे गए की या तो यातनाएं सेहन करो या इस्लमा  को अपना लो किंतु संभाजी महाराज ने यातनाएं सहना ज्यादा उचित समझा


औरंगजेब के शासन काल के इतिहासकार के अनुसार कैदीयों को जंजीरों से जकडकर हाथी के हौदे से बांधकर औरंगजेब  तक ले जाया जाता था जो कि अकलूज में उपस्थित था मुगल शासक तक ये खबर पहले ही पहुँच चुकी थी और उन्होंने इसके लिए एक महोत्सव के आयोजन की घोषणा की मुगलों ने पूरे मार्ग में विजयी सेनापतियों के लिए उत्सव का आयोजन और स्वागत किया मुगलो की जीत के जश्न के लिए शेख निज़ाम का चित्र बनवाया गया मुगल पुरुष सड़कों पर और झरोखों से झांकती महिलाए बुरखे के अंदर  से हारे हुए मराठा सम्राट को देखने को उत्सुक थी, जबकि राह में पड़ने वाले हर मुगल उनका उपहास उड़ा रहे थे और कुछ तो उनके अपमान में मुंह पर थूक भी रहे थे मुगलों से मिले हुए 

राजपूत सैनिकों को संभाजी के लिए बहुत अधिक सहानुभूति थी संभाजी महाराज ने उन्हें ललकारते  हुए कहा कि या तो वे उन्हें मुक्त कर उनके सन्मुख युद्ध कर ले या फिर उन्हें मारकर इस अपमान से मुख्त कर दे, लेकिन मुगलों के डर से वो सैनिक चुप  थे इस तरह 5 दिनों तक चलने के उपरांत वो लोग औरंगजेब के दरबार में पहुंच गए


औरंगजेब संभाजी महाराज को देखते ही अपने सिहासन से नीचे उतरकर आया और उसने कहा कि मराठाओ का आतंक बहुत अधिक बढ़ गया था, वीर शिवाजी महाराज के पुत्र का मेरे सामने खड़े होना मेरे लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, ऐसा कहकर औरंगजेब ने अपने अल्लाह को याद करने के लिए घुटने टेके तब कवि कलश उस समय जंजीरों से बंधे हुए एक तरफ खड़े थे,  उन्होंने संभाजी की तरफ देखा और बोला कि हे मराठा राजे! देखिये आलमगीर खुद अपने सिंहासन से उठकर आपके आगे श्रद्धा से नतमस्तक होने आये हैं कलश ने उन विपरीत परिस्थियों में भी वीरता दिखाई और बोला कि औरंगजेब अपने दुश्मन संभाजी महाराज के सामने घुटने टेक रहे हैं यह सुनते ही औरंगजेब अधिक क्रोधित हो गया और कवि कलश को मारने लगा एवं कुछ समय उपरांत जब थक गया तब राज्य कवि कलश और संभाजी महाराज को बंदी गृह में डलवाने के लिए बोला कुछ दिनों के बाद औरंगजेब खुद बंदी गृह में आता है और बोलता है कि तुम इस्लाम स्वीकार कर लो तो तुम्हें यहां से मुक्त कर दूंगा और तुम फिर से अपने राज्य पर राज कर सकते हो किंतु संभाजी महाराज ने उसके मुंह पर थूकते हुए उसे मना कर दिया  और बोला मुझे किसी भी राज्य का कोई लोभ नहीं है, हमारा धर्म सभी धर्मों से ऊपर है संभाजी महाराज की इस बात से क्रोधित होकर औरंगजेब ने उनके राज्य कवि एवं परम मित्र कलश को घसीट कर मारने की सजा सुना दी और मुगल सैनिकों ने उनका हाथ घोड़े के पीछे बांध दिया एवं उनको औरंगजेब के राज्य की आखिरी सीमा तक घसीटते हुए ले जाने को बोला बहुत अधिक घसीटे जाने की वजह से राज्य कवि कलश का रक्त बहता गया और उनकी मृत्यु हो गई जब यह बात संभाजी महाराज को पता चली तब वह बहुत दुखी हुए


महाराज संभाजी की मृत्यु के विषय में :-


औरंगजेब ने कई बार संभाजी महाराज को क्षमा कर देने की बात बोली,  किंतु उसकी शर्त थी की संभाजी महाराज इस्लाम कबूल कर ले लेकिन संभाजी ने मुगलों की हंसी उड़ाते हुए कहां की मुगलो के समान मुर्ख नहीं है, जो ऐसे मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति (मोहम्मद) के सम्मुख अपने घुटने टेक दें ऐसे बोलने के बाद अपने आराध्य महादेव का जाप करना शुरू कर दिया जिससे  क्रोधित होकर औरंगजेब ने उनकी जीभ काट के कुत्ते को खिला दिया परंतु इसके बाद भी उन्होंने गर्व से अपना सर ऊपर ही रखा और औरंगजेब की आंखों में आंखें डाल कर देख रहे थे औरंगजेब ने उनसे उनकी आंखें नीचे करने को बोला किंतु इन्होंने उसका कहना नहीं माना जिसके कारण औरंगजेब ने उनकी आंखें निकाल ली और फिर इनका एक हाथ और एक पैर भी काट दिया इसके बाद भी यह मुस्कुराते रहें और भगवान का नाम लेते रहे,  2 हफ्ते के उपरांत 11 मार्च 1689 को इनका सर धड़ से अलग कर दिया और महाराष्ट्र में चौराहे पर लटका दिया और उनकी शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े करके कुत्तों को खिला दिया दोस्तों आज हमारा अस्तित्व अगर है तो संभाजी महाराज और छत्रपति शिवाजी महाराज महाराणा प्रताप एवं पृथ्वीराज सिंह चौहान जैसे वीर राजाओं की वजह से ही हम जिंदा हैं और हमारी संस्कृति भी जिंदा है मैं संभाजी महाराज को बार-बार नमन करता हूं और उनका धन्यवाद करता हूं  उनके बलिदान के कारण ही आज हमारी संस्कृति जिंदा है


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