Monday, August 3, 2020

ओंके ओबव्वा

ओंके ओबव्वा :-


इस भारतवर्ष की पावन धरा पर अनेकों वीर और वीरांगना ने जन्म लिया और अपना नाम इतिहास के  सुनहरे पन्नों में दर्ज कराया और इतिहास में इन्हें अलग ही नजरों से देखा जाता है मुझे ऐसे लोग हैं जिनके जैसा ना कोई था और ना कोई होगा आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसी वीरांगना के बारे में जिसने 18वीं शताब्दी में अपनी वीरता साहस और पराक्रम  से मुगल सैनिकों की ईट से ईट बजा दी थी यह थी तो एक आम महिला परंतु वीरता इनके अंदर कूट-कूट कर भरी थी ऐसी वीर महिला को मेरा बार-बार नमन है तथा समय की तेज धारा ने ऐसे वीर एवं वीरांगनाओं को कहीं पीछे छोड़ दिया है और हमारा उद्देश्य उन सभी वीर तथा वीरांगनाओं को आप सभी के मध्य लाने का है आइए जानते हैं यह कौन है


ओंके ओबव्वा के बारे में कुछ रोचक तथ्य :-


मदकरी राजा के शासनकाल के वक्त के समय चित्रदुर्ग किले को सुल्तान हैदर अली 【1754 से 1779 】की खूंखार सेना  ने चित्रदुर्ग के किले को चारों तरफ से घेर लिया था

 किले को सभी दिशाओं के तरफ से सुल्तान हैदर अली की सेना ने घेर रखा था पर विजय के कोई ख़ास विकल्प नहीं दिख रहे थे क्योंकि किले के दरवाजे काफी गुप्त थे एवं सुल्तान हैदर अली के सेनापति कोई तरकीब नहीं सोच रही थी किला बंद था और उसके अन्दर बैठे सिपाहियों पर सीधा हमला करने का कोई उपाय भी नहीं था तभी किसी एक सैनिक की नजर चट्टानों पर पड़ी और उसने देखा कि  एक छेद के माध्यम से चित्रदुर्ग किले में प्रवेश करने वाला एक व्यक्ति दिखा और उस सैनिक ने यह बात सुल्तान हैदर अली को बताया तथा हैदर अली ने उस छेद के माध्यम से अपने सैनिकों को अन्दर भेजने की योजना बनाई उस समय वहाँ कहले मुड्डा हनुमा  नामक  एक प्रहरी पहरा दे रहा था परंतु कुछ समय के उपरांत वह अपने घर दोपहर का भोजन करने चला गया तथा उसके भोजन करने के दौरान उसकी पत्नी ओबव्वा तालाब से जल लेने चली गई जो पहाड़ी के अर्ध भाग में चट्टानों में छेद के पास था परंतु जब हुआ जल लेने के लिए झुकी तब उस पहरेदार की पत्नी ओबव्वा ने देखा कि सुल्तान के सैनिक छेद के माध्यम से किले में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं परंतु उसने अपनी साहस और वित्त दिखाते हुए उन सैनिकों को मारने के लिए एक मूसल का प्रबंध किया और  छेद के पास आकर खड़ी हो गई किंतु छेद के  अति सूक्ष्म होने के कारण  सैनिक  जैसे तैसे  एक-एक करके ही आ रहे थे, जैसे ही  सैनिक उस छेद से अन्दर आते जाते वैसे  ही ओबव्वा उनके सिर पर तीव्रता से घातक  प्रहार करती एवं वह सैनिकों के शव को एक ओर करती रहती जिससे कि अन्य  सैनिक सचेत होने का अवसर प्राप्त  न हो कुछ समय उपरांत  जब पानी लाने में देर होने लगी तब  पति मुड्डा हनुमा को संदेह  हुआ तथा वाह खाना छोड़ कर अति शीघ्र वहां पहुंचा गया और इधर ओबव्वा के खून से सने हुए हाथ  और मूसल देखकर दंग रह गया और जब उसने अपने आसपास नगर घुमाई तब उसने देखा कि उसके आस-पास दुश्मन सैनिकों के कई शव बिखरे पड़े हैं इन सभी शवो को देखकर वह हैरान हो गया परंतु उसी बीच एक सैनिक ने उसके पति को मार दिया और जब वह सैनिक उस पर हमला किया तब ओबव्वा ने बिना वक्त कब आए उसके सिर पर तुरंत प्रहार किया जिसके कारण उसकी मृत्यु तुरंत हो गई कुछ समय तक या सिलसिला निरंतर चलता रहा परंतु जब वह थक गई तब एक सैनिक ने उस वीरांगना के प्राण हर लि लिए वह वीर  महिला होलायस (चौलावादी) समुदाय से थी पर उसके इस प्रयास ने उस वक्त तो किले को बचा लिया था लेकिन सन 1779 के दौरान मादकरी सुल्तान हैदर अली के हमले का विरोध नहीं कर पाया तथा चित्रदुर्ग के किलें के ऊपर सुल्तान हैदर अली ने कब्जा कर लिया

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