Monday, August 3, 2020

रानी केलाड़ी चेनम्मा

रानी केलाड़ी चेनम्मा :-

केलाड़ी कर्नाटक में मलनाड क्षेत्र का एक राज्य था सन 1664 में सोमशेखर नामक केलाड़ी का एक राजा बना वह एक कुशल और धार्मिक शासक था उसने अपने साम्राज्य में अत्याधिक सुधार कार्य किये एक बार राजा रामेश्वर मेले में घूमने के लिए गया वहां उसने एक अत्याधिक  सुंदर कन्या  चेनम्मा को देखा। चेनम्मा की खूबसूरती ने राजा का ध्यान इस प्रकार आकर्षित किया की राजा उन से प्रेम करने लगे और उनसे विवाह करने के बारे में सोचने लगे


अपने राज्य में वापस लौट कर राजा ने अपने सलाहकार को बुलाकर चेन्नमा के बारे में बताया तथा विवाह करने की  अपनी इच्छा  व्यक्त की सलाहकार  ने राजा को एक सामान्य कन्या से विवाह न करने की सलाह दी किंतु राजा ने कहा कि वह विवाह करेगा तो केवल चेनम्मा से और यही उनका अंतिम फैसला है अंततः राजा और चेनम्मा की विवाह अत्याधिक हर्ष उल्लास के  साथ संपन्न हुई



चेनम्मा राजघराने की नीति  का सम्मान करते हुए एक कुशल महारानी की तरह राजघराने का कार्यभाल देखने मैं व्यस्त रहती वह अपने राज्य के विषयों में अधिक रूचि लेती तथा  अत्याधिक महत्वपूर्ण मामलों पर राजा को एक बहुमूल्य सलाहकार की तरह सलाह भी देती चेनम्मा एक वीर साहसी  एवं  उदारता से ओतप्रोत रानी की जो राजमहल के कर्मचारियों से अपने परिवार की तरह प्रेम करती थीं किंतु  कहते हैं ना की अच्छा वक्त सदा के लिए नहीं रहता और कुछ समय के उपरांत चेनम्मा का पति एक नर्तकी के प्रेम चाल में फस गया तथा राजा अपना राज-काज त्याग कर नर्तकी के साथ ही रहने लगा इससे राज्य की स्थिति अत्याधिक बुरी होने लगी एवं राज्य पर हमेशा शत्रु राज्य का खतरा बढ़ गया


जब कलेड़ी की दुर्बलता शत्रु राज्य बीजापुर के सुल्तान को पता लगी तो उसने  कलेड़ी राज्य पर आक्रमण करने का सुनहरा अवसर अपने हाथ से निकलने नहीं दिया अर्थात आक्रमण कर दिया इस स्थिति का ज्ञान होते ही चेनम्मा ने शासन की संरक्षण करने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाएं इसी अवसर का फायदा उठाकर बीजापुर के सुलतान ने चेनम्मा के पति का प्राण हर लिए इसके अलावा चेनम्मा भी निसंतान थी राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में उन्होंने बसप्पा नायक को गोद ले लिया


चेनम्मा के मंत्रिमंडल में अति विश्वासपात्र एवं  वीर साहसी कुशल मंत्री थे और सेना के सैनिक भी अत्याधिक वीर थे उनके नेतृत्व में कलेड़ी की सेना ने बीजापुर के सुल्तान को अच्छा खासा सबक सिखाया युद्ध में चेनम्मा के हाथों बीजापुर युद्ध हार गया सन 1671 में चेनम्मा के युद्ध जीतने के पश्चात  कलेड़ी की रानी घोषित किया गया। इसके बाद पच्चीस वर्षों तक चेनम्मा ने कलेड़ी राज्य की सीमाओं में निरंतर विस्तार किया



रानी चेनम्मा के शासन काल में कलेड़ी में शांति पुनः स्थापित हुई। इससे राज्य में खुशहाली तथा समृद्धि अत्याधिक  बढ़ गई  उन्होंने अनेक प्रकार के धार्मिक कार्यों में अपना योगदान दिया मंदिरों का विस्तार कर विशेष पूजा की व्यवस्था की एवं गुरुकुल की स्थापना करने के लिए भूमि भी दी तथा भिन्न-भिन्न  राज्यों के विद्वानों को कलेड़ी में बसने के लिए आमंत्रित किया इसके लिए उन्होंने विद्वानों के लिए रहने तथा उनके सुख सुविधा की व्यवस्था भी की चेनम्मा अत्याधिक  धार्मिक प्रवृत्ति की रानी थी और अपनी सभी विजयों का श्रेय परमपिता परमेश्वर को देती थीं


जब रानी चेनम्मा के प्रभाव अत्याधिक बढ़ने लगा तब उनके पडोसी राज्य मैसूर की सेना ने उन पर हमला बोल दिया तथा अपनी वीरता से उन्होंने मैसूर की सेना को दो बार धूल चटाई  अंततः मैसूर के राजा ने अपनी पराजय से डर कर रानी चेन्नम्मा से संधि कर ली


 रानी चेनम्मा की सुबह प्रार्थना और पूजा के बाद भिक्षुओं और सन्यासियों को दान देने से होती थी किंतु कुछ समय के उपरांत एक बार चार साधु रानी के निकट आये इन चारों का व्यवहार सन्यासियों के भांति तो बिल्कुल ही नहीं था किंतु कुछ समय के उपरांत  रानी ने भी उनको भांप लिया


रानी के बलपूर्वक पूछने पर उन चारों के सरदार ने बताया की वह छत्रपति शिवाजी महाराज का पुत्र रामराज है। शिवाजी के पुत्र की ऐसी दुर्दशा देखकर रानी रानी के पांव तले जमीन खिसक गई तथा  वह आश्चर्यचकित रह गयी उन्हें बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि पूरे महाराष्ट्र में सनातन धर्मी के संरक्षण करने वाले शिवाजी महाराज के पुत्र उनके राज्य में शरण लेना चाहते हैं


राजाराम ने रानी  को  बताया कि औरंगजेब द्वारा उनके भाई शम्भाजी महाराज कि हत्या और सनातन धर्मी पर हो रहे अत्याचार की बात सुनकर रानी को अत्याधिक कष्ट हुआ उन्होंने राजाराम तथा उनके मित्र गणों  को शरण दीया एवं अपने मंत्री को निर्देश दिया कि उनकी देखभाल एक वरिष्ठ अतिथि  के सामान की जाए औरंगजेब ने रानी चेनम्मा द्वारा शिवाजी महाराज के पुत्र को शरण देने के बारे में जानकर अत्यधिक क्रोधित हुआ और उनके राज्य कलेड़ी पर आक्रमण कर दिया लेकिन चेनम्मा की वीर सेना ने औरंगजेब की सेना के नाक में दम कर दिए तथा परिणाम स्वरूप  मुग़ल सेनापति को कलेड़ी के साथ संधि करनी पड़ी।


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