रानी कित्तूर चेनम्मा :-
दोस्तों आज हम बात करेंगे एक ऐसी महारानी की जिसने रानी लक्ष्मीबाई जीके संघर्ष से पहले ब्रिटिश शासन को नाको तले चना चबाने पर मजबूर कर दिया था तथा भारत के इतिहास में वह एक पहेली ऐसी रानी हुई जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद किया और उन्हें या सोचने पर मजबूर कर दिया कि एक स्त्री भी विद्रोह कर सकती है जी हां हम बात कर रहे हैं महारानी कित्तूर चेन्नम्मा की आइए इनके बारे में विस्तृत रूप में पढ़ते हैं
रानी कित्तूर चेनम्मा का जन्म :-
रानी कित्तूर चेन्नम्मा का जन्म भारत के कर्नाटक राज्य के बिलगावी जिले के छोटे से गांव काकटि में 23 अक्टूबर 1778 को हुआ था, वह अपने पड़ोसी राज्य कित्तूर की रानी बनी तथा देसाई परिवार के राजा मल्लासर्ज ने उनसे प्रेम कर विवाह कर लिया था बचपन से ही तलवारबाजी एवं युद्ध नीति मणिपुर रानी चेन्नम्मा के अंदर वीरता तो मानो कूट-कूट कर भरी थी और यही वीरता उनके प्रसिद्ध होने का तथा इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज कराने का एकमात्र कारण बना जिसके बाद आज कर्नाटक में इनकी एक अलग ही पहचान है
ब्रिटिश साम्राज्य कि कित्तूर पर मनमानी :-
जब ब्रिटिश शासन ने पूरे भारत पर अपना अधिकार कर लिया तथा कर्नाटक में पूरी तरह से अपनी मनमानी करने लगे तब रानी चेन्नम्मा ने कित्तूर में हो रही ब्रिटिश अधिकारियो की मनमानी को नजरअंदाज ना करते हुए बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गवर्नर को सन्देश भी भेजा परंतु उनके संदेश भेजने का कोई फायदा नही हुआ, ब्रिटिश शासन के अधिकारी कित्तूर के राज्य में रखें खजाने और बहुमुल्य आभूषणों और जेवरात को हथियाना चाहते थे| उस समय उस राज्य के खजाने की कीमत तकरीबन 1.5 मिलियन रूपए थी
इसीलिये ब्रिटिश शासन ने अपने 20000 सैनिकों और अधिक संख्या में गोला बारूद से लैस विशाल सेना के साथ आक्रमण बोल दिया सन 1824 में युद्ध के पहली पाली में ब्रिटिश सेना को अत्याधिक क्षति पहुंची एवं इस युद्ध में इनके पति की मृत्यु हो जाती है और कलेक्टर जॉन थावकेराय की हत्या हो गई जिससे ब्रिटिश सेना सूक्ष्म रूप से कमजोर होने लगी तथा रानी चेनम्मा का मुख्य सहयोगी बलप्पा ही ब्रिटिश सेना के पतन का मुख्य कारण बना इसके उपरांत दो ब्रिटिश अधिकारी सर वाल्टर इलियट और मी स्टीवसन को भी रानी चेन्नम्मा के सेनापति ने बंदी बना लिया लेकिन फिर ब्रिटिश शासन के साथ समझौते के कारण वश उन्हें बाद में छोड़ दिया गया और रानी चेन्नम्मा से ब्रिटिश शासन के खिलाफ युद्ध ना करने के लिए दस्तावेज पर हस्ताक्षर ले लिए
ब्रिटिश शासन के नीतियों के खिलाफ संघर्ष :-
ब्रिटिश शासन की नीति डाक्ट्रिन आफ लैप्स के अनुसार दत्तक पुत्रों को राज करने का अधिकार नहीं था ऐसी स्थिति आने पर ब्रिटिश शासन उस राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लेता था कुमार के अनुसार रानी चेनम्मा और ब्रिटिश शासन के मध्य हुए युद्ध में इस नीति की अहम भूमिका थी। 1857 के आंदोलन में भी इस नीति की प्रमुख भूमिका रही तथा ब्रिटिश साम्राज्य की इस नीति सहित विभिन्न नीतियों का विरोध करते हुए कई रजवाड़ों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। डाक्ट्रिन आफ लैप्स के अलावा रानी चेनम्मा का ब्रिटिश शासन की कर नीति को लेकर भी विरोध जताया था और उन्होंने इस मुद्दे को मुखर आवाज दी रानी चेनम्मा पहली उन महिलाओं में से थीं जिन्होंने अनावश्यक हस्तक्षेप एवं कर संग्रह प्रणाली को लेकर ब्रिटिश साम्राज्य का बलपूर्वक विरोध किया।
ब्रिटिश साम्राज्य की नजर इस सूक्ष्म परन्तु संपन्न राज्य कित्तूर पर अत्याधिक दिन से लगी थी अवसर मिलते ही उन्होंने गोद लिए पुत्र को उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया और वे राज्य को अपने अधिकार मे करने की योजना बनाने लगे परंतु रानी चेन्नम्मा ने सन् 1824 में (सन् 1857 के भारत के स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम से भी 33 वर्ष पूर्व) उन्होने जबरदस्ती अधिकार नीति (डॉक्ट्रिन आफ लेप्स) के विरुद्ध ब्रिटिश शासन से भीषण संघर्ष किया
कित्तूर राज्य पर हमला :-
ब्रिटिश शासन ने आधा राज्य देने का लोभ देकर राज्य के कुछ देशद्रोहियों को भी अपनी ओर कर लिया किंतु पर रानी चेन्नम्मा ने स्पष्ट रूप उत्तर दिया कि उत्तराधिकारी का मामला हमारा अपना मामला है, ब्रिटिश साम्राज्य का इससे कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए साथ ही उन्होंने अपनी प्रजा से कहा कि जब तक तुम्हारी रानी की नसों में रक्त की एक भी बूँद है, कित्तूर पर कोई भी बलपूर्वक अधिकार नहीं कर सकता है
रानी चिन्नम्मा का उत्तर मिलते ही धारवाड़ के कलेक्टर थैकरे गुस्से से आग बबूला हो गया और उसने अपने 500 सिपाहियों के साथ कित्तूर का किला घेर लिया 23 सितंबर, 1824 का वह काला दिन था जब किले के विशाल द्वार बंद थे। थैकरे ने दस मिनट के अंदर रानी चेन्नम्मा को आत्मसमर्पण करने की चेतावनी दी इतने में अकस्मात क़िले के विशाल द्वार खुले और दो हज़ार वीर सैनिकों की अपनी सेना के साथ रानी चेन्नम्मा मर्दाने वेश में ब्रिटिश साम्राज्य की सेना पर टूट पड़ी और एक बार फिर ब्रिटिश सेना पर रानी चेन्नम्मा भारी पड़ने लगी और उनकी वीर सेना ने अंग्रेजों को धूल चटा दिया जिससे डरकर धारवाड़ के कलेक्टर थैकरे वहां से भाग गया
रानी चेन्नम्मा ने अपने ही राज्य के दो देशद्रोहियों को अपनी तेज तलवार से मौत के घाट उतार दिया। ब्रिटिश सेना ने मद्रास और मुंबई से कुमुक मंगा कर 3 दिसंबर, 1824 को पुनः कित्तूर के किला को घेर कर हमला बोल दिया परन्तु उन्हें दोबारा कित्तूर के वीर सैनिकों के सामने फिर पीछे हटना पड़ा परंतु कुछ दिन के उपरांत वे फिर आ धमके किंतु अब इस छोटे से राज्य के लिए लोग काफ़ी बलिदान कर चुके थे और इस राज्य को दूसरे किसी राज्य से भी कोई मदद नहीं मिल रही थी दिन में दिन में इनकी शक्ति एवं सेना की कमी के वजह से इस बार रानी चेन्नम्मा युद्ध हार जाती हैं एवं ब्रिटिश शासन की सेना इनको बंधक बना लेती है
रानी चेन्नम्मा की मृत्यु :-
रानी चिन्नम्मा की मृत्यु 2 फरवरी 1829 में अंग्रेजों द्वारा जेल में दिए जा रहे प्रताड़ना के कारण हुई भले ही ब्रिटिश साम्राज्य में यह एक बागी थी परंतु भारत के इतिहास में या एक वीरांगना रहेंगी ।
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