Monday, August 3, 2020

तात्या टोपे

तात्या तोपे :-


दोस्तों वैसे  तो भारत को स्वतंत्र कराने में कई वीरो ने अपने प्राणों की आहुति दी है आज तक इतिहास गवाह है कि भारत पर हर बार विदेशी आक्रमणकारियों ने हमला किया है किंतु ध्यान देने वाली या बात है कि आज तक किसी भी हुकूमत ने संपूर्ण भारत पर कभी राज नहीं कर पाये कहीं ना कहीं से क्रांति की एक ऐसी लहर आती ही थी जो संपूर्ण भारत में फैल जाती थी जिससे प्रभावित होकर के लोग विदेशी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह करने लगते थे उसी में से एक कहानी ऐसी भी है जिसने इतिहास के सुनहरे पन्नों में अपना नाम दर्ज किया और इतिहास में उच्च स्तर पाया जी हां दोस्तो आज हम बात करने वाले है भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका निभाने वाले एक ऐसे क्रांतिकारी जिनका नाम तात्या टोपे है और  जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की ईट से ईट बजा रखी थी आइए जानते हैं इनके बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें ।


तात्या टोपे जी का जन्म :-


भारतवर्ष की इस पावन भूमि पर जन्म लेने वाले तात्या टोपे जी का जन्म सन 1814 में महाराष्ट्र के नासिक जिले के येवला नामक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था यह 8 भाई बहन थे तथा भाई बहन में या सबसे जेष्ठ( बड़े ) थे । उनके पिता का नाम पांडुरंग राव भट्ट तथा माता का नाम रुक्मिणी बाई था , तात्या टोपे जी का नाम जन्म से ही तात्या टोपे नहीं था इनका पूरा नाम रामचंद्रराव पांडुरंगराव येवलकर था तात्या एक उपनाम था  जो कि इनको प्रेम से बुलाया जाता था इनके पिता पांडुरंग पेशवा बाजीराव द्वितीय के धर्मदाय विभाग का कार्यभार संभालते थे और इनकी माता एक ग्रहणी थी।


 तात्या टोपे नाम का कारण :-


जब यह बड़े हुए तो इनको पेशवा बाजीराव द्वितीय ने राज्यसभा का कार्यभार सौंप दिया तथा इन्होंने राज्यसभा में एक भ्रष्ट कार्यकर्ता को पकड़ा तथा इनकी कार्य के प्रति निष्ठा  को देखकर बाजीराव द्वितीय ने इन्हें एक नवरत्नों से जड़ी टोपी से सम्मानित किया जिसके बाद इनका नाम तात्या टोपे हो गया ।



तात्या टोपे तथा 1857 का विद्रोह:-



तात्या टोपे जी के पिता  पेशवा बाजीराव के वफादारो में से एक थे जब   ब्रिटिश शासन ने पूरे भारत मैं अपने पैर लगभग पसारी लिए थे तब उनकी नजर पेशवा पर पड़ी और अंग्रेजों ने बाजीराव द्वितीय से सौदा किया कि वह अपने राज्य दे दे परंतु पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों से युद्ध करना ज्यादा उचित समझा और उस युद्ध में पेशवा बाजीराव द्वितीय बुरी तरह से हार गए उसके बाद अंग्रेजों ने उनका राज्य हड़प लिया और हर महीने उन्हें पेन्शन देना शुरू किया जब पेशवा बाजीराव द्वितीय बिठूर चले गए तब उन्होंने तात्या टोपे जी के पिता को भी साथ चलने को कहा और तात्या टोपे जी के पिता भी अपने परिवार के साथ बिठूर चले आए वहीं पर तात्या टोपे और बाजीराव की के पुत्र नाना साहब के साथ उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई तथा वे दोनों आपस में मित्र बन गए और कुछ समय बाद नाना साहेब के दाएं हाथ बन गए तात्या टोपे बचपन से ही अत्यंत वीर थे सन 1857 मैं जब युद्ध प्रारंभ हुआ तो तात्या टोपे जी ने 20000 सैनिकों के साथ भीषण युद्ध लड़ा और कानपुर से अंग्रेजों को भगा दिया। तथा इन्होंने कलपी के युद्ध में महारानी रानी लक्ष्मीबाई की मदद की नवंबर 1857 में ग्वालियर के सभी क्रांतिकारी वीरों को अपने साथ विद्रोह में सम्मिलित किया और अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध लड़के ग्वालियर को आजाद कराने चल दिए परंतु या युद्ध पराजय में बदल गया और ग्वालियर आजाद ना हो पाया इसका मुख्य कारण ग्वालियर के पूर्व सरदार मानसिंह ने सत्ता के लालच में अंग्रेजों से हाथ मिला कर के ग्वालियर के आजाद कराने के विषय पर अंग्रेजों को सूचना दे दी और इसके परिणाम स्वरूप ग्वालियर आजाद ना हो पाया।



तात्या टोपे जी की मृत्यु :-


 भारतवर्ष के इस वीर सपूत की मृत्यु का मुख्य कारण मानसिंह से मिली धोखे के वजह है सत्ता के लालच में ग्वालियर के मानसिंह ने अंग्रेजों को तात्या टोपे गुप्त होने के बारे में  सूचित कर दिया जिसके उपरांत 7 अप्रैल सन 1859 को अंग्रेजों ने उनको गिरफ्तार कर लिया तथा गिरफ्तारी के 15वे दिन ही 18 अप्रैल सन 1859 को फांसी पर लटका दिया 



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